अनसुलझी सी जिंदगी को सुलझाने लगी हूँ,
जिंदगी के सारें गमों को पीने लगी हूँ।
लिखना मुझे इस क़दर भा गया,
जिंदगी के दर्द को स्याही से पन्नो पर छापने लगी हूँ,
हाँ! मैं लिखने लगी हूँ।
कभी पुरानी बातें लिखती हूँ तो कभी दिल की हालातें लिखती हूँ,
ना कभी मोहब्बत हुई किसी से ना कभी बेवफाई लेकिन जिंदगी ने दोनों का एहसास दिला दिया,
जब खुश रहती हूँ तो मोहब्बत लिख देती हूँ जब गम में तो बेवफाई,
आता नही था मुझे लिखना लेकिन शब्दों के हेर फेर ने मुझे लिखना सीखा दिया।
जिंदगी के दर्द को स्याही के पन्नों पे रखने लगी हूँ ,
हाँ! मैं लिखने लगी हूँ।
ना है मुझे किसी से मोहब्बत न ही किसी महबूब की चाहत ,
मैं लिखती तो नही थी लेकिन अब लिखने लगी हूँ ,
अपनी मन की बातों को स्याही से पन्नों पर रखने लगी हूँ
हाँ! मैं लिखने लगी हूँ।
कभी पुरानी यादें लिखती हूँ तो कभी नई बातें लिखती हूँ,
कभी खुद की पीड़ा लिखती हूँ तो कभी दोस्तों की व्यथा लिखती हूँ,
कभी अपनी गलतियों को लिखती हूँ तो कभी लोगों की गलतफहमियों को लिख देती हूं,
कभी कुछ लोगों की वजह से लिखती हूँ तो कभी बेवजह लिख देती हूँ,
कभी मन की शांति को लिखती हूँ तो कभी दिल की हलचल लिख देती हूं,
अपने जज्बातों को कागज के पन्नों पर रखने लगी हूँ ,
हाँ! मैं लिखने लगी हूँ ।
✍️गुड़िया कुमारी
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