सीता का प्रेम
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सीता भी राम से अगाध प्रेम करती थीं
राम के जज़्बातों को खूब समझती थीं
एक पत्नीव्रता होने का वचन दिया था
सीता को मन वचन से पत्नी माना था
राम के प्रति स्नेह जो समर्पित था सदा
वह इस आत्मिक प्यार को जानते थे
राम को चौदह बरस का वनवास मिला
सीता ने भी साथ चलने को स्वयं कहा
राजमहल की रानी रहकर भी उन्होंने
कितना बड़ा असंभव त्याग किया था
यह साधारण व्यक्तित्व की बात नहीं
सीता के सरल स्वभाव से जग अभिभूत
यह मर्यादित प्रेम की अद्भुत कहानी है
सीता-राम की जोड़ी हमें देती सीख है
राम के हृदय वेदना को पहचानती थीं
सीता आने वाले कल को जानती थीं
प्रजा चले सन्मार्ग पर तो त्यागा महल
श्रीराम को छोड़ सीता वन को गईं
लव व कुश प्रभु श्रीराम को सौंपकर
धरती फटी समा गई उसमें माता सीता
सूर्यदीप कुशवाहा
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