साहित्य चक्र

16 May 2020

निष्पापी

सती अहिल्या


काम है सब अवगुणों की निशानी
इंद्र की वासना की कहानी पुरानी।।

देव पद को जो कर गए कलंकित।
निष्पापी को भी करवा गए दंडित।।

अपने ही दोषी जब जब  ठहराए।
नारी तब शिला बन मौन रह जाए।।

ऋषि गौतम की पारलौकिक तपोदृष्टि।
भेद न जाने किस काम की योग दृष्टि।

शील- अशील का जो मर्म न पहचाने।
निपराधि अवला को भी जो दोषी माने।।

युगों युगों अहिल्या का दृढ़ विश्वास।
मन में लिए सती राम दर्श की आस।।

                                              राज शर्मा


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