साहित्य चक्र

12 May 2020

ममता की गान

ममता की गागर मे सागर।
माँ तेरी ही परिभाषा दिखती।।

हे ममता की सागर माते।
तुझको नित हम शीश झुकाते।।

ममता हर पल सफल बनाती।
परिभाषा इसकी सिमट न पाती।।

ममता रूपी जहान।
सदा सदा रहे महान।।

हे ममता की जहान माँ।
तू ममता की खान लुटाती।।

ममता के सागर में माता
तेरी महिमा गाता रहूँ मैं
हर रूपों में छाया तेरे,

ममता सदा लुटानें वाली
ममता की परिभाषा माँ।
करती हर अभिलाषा माँ।

नमन सदा ममता का होता।
सबको लेकर यही पिरोता।।

ममता की लहराये धारा।
लागे सबको प्यारा प्यारा।।

ममता का सुन्दर श्रंगार।
दे सबको स्नेह दुलार।।

ममता की बहती धारा मे
चलो हम डुबकी लगाये।।

बहती रहे ममता की धार
बरसता रहे सदा बहार।।

ममता की गहरी परिभाषा,
माता के चरणो मे दिखता।।

ममता की गान।
लाती जां मे जान।।


                                               नवीन कुमार भट्ट नीर

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