साहित्य चक्र

12 May 2020

मां..

मां

मां की ममता...
मां का ममत्व...
मां का मनोबल...
मां का मार्गदर्शन...
मां का मोह...
मां का भोलापन...
मां का प्यार...
मां का दुलार...
मां की सुन्दरता...
मां की सौम्यता...
ना जाने कितने अनगिनत
अर्थ छुपाए बैठा है
अपने आगोश में
मां शब्द


मां
एक ऐसा सुकून की छांव भरा आंचल,
जहां हल है हर बच्चे की परेशानी का।
जहां हर पल नया-नया रंग है,
बच्चे की हर खुशी का।

मां 
एक ऐसा शब्द
सुनते ही ना जाने कितने
भाव उमड़ आते हैं मन पर।
निश्चल -निःस्वार्थ,त्याग की मूर्ति
बन जाती है ढाल 
जब विपदा आये बच्चे पर।

मां
हर सुबह,दोपहर और शाम में
समाई है बच्चे के रग- रग में।
जिसकी हर डांट में भी छुपा है स्नेह
जिसके हर लाड़ में छुपी है सारी जन्नत।

मां 
जन्मदात्री के अलावा
दादी-नानी,ताई-चाची-मामी,
बुआ-मौसी,दीदी-भाभी
और सासू मां के रूप में
मिलती है हमें पग-पग में।
प्रणाम् मेरा मां के हर
रूप को।

मां 
अपने अन्तर्मन में
ना जाने कितनी इच्छाओं को दबाकर
की होंगी जरूरतें पूरी हमारी।
ना जाने कितना किया होगा 
संघर्ष।
कितना सहा होगा 
लोगों के कटु वचनों को।
एक कोने पर जाकर सिसकी होगी।
हमने भी ना देखा होगा।

मां 
पर तेरा वो खिलखिलाता चेहरा
याद हमेशा आता है।
शब्दों का भंडार भी कम है,
तेरे निश्चल प्यार पर।
कोटि-कोटि है प्रणाम मां
तेरे हर त्याग पर।


                                                    तनूजा

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