साहित्य चक्र

14 May 2020

नदियों व झड़नों का पानी...


जहाँ जाने के बाद वापस आने का मन ना करे
जितना भी घूम लो वहाँ पर कभी मन ना भरे
हरियाली, व स्वच्छ हवा भरमार रहती है जहाँ 
सच में वही तो असली प्रकृति कहलाती है ।


जहाँ पर चलती गाड़ियों की शोर नही गूंजती
जिस जगह की हवा कभी प्रदूषित नही रहती 
सारे जानवरों की आवाजें सदा गूंजती है जहाँ 
सच में वही तो असली प्रकृति कहलाती है ।


जहाँ नदियों व झड़नों का पानी पिया जाता है
जहाँ जानवरों के बच्चों के साथ खेला जाता है
बिना डर के जानवर विचरण करते हैं जहाँ 
सच में वही तो असली प्रकृति कहलाती है ।


पहाड़ जहाँ सदा शोभा बढ़ाते हैं धरती की 
नदियाँ जहाँ सदा शीतल करती हैं मिट्टी को
वातावरण अपने आप में संतुलित रहता है जहाँ
सच में वही तो असली प्रकृति कहलाती है । 


                                       - सौरभ कुमार ठाकुर


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