साहित्य चक्र

15 May 2020

जीवन और परिवार



जीवन को समृद्ध करने के लिए, 
जब परिवारिक इकाई,
 समाज ने बनाई।

फिर क्यों ........???
आज के परिवेश में, 
घर बना कर,
 परिवार बनाकर ।

जिंदगी बस ,
अपने -अपने ,
कमरे तक ही समाई ।।

जबकि जिंदगी को ,
समृद्ध करने के लिए ,
जब हम और आपने ,
परिवारिक इकाई,
समाज के विकास के लिए बनाई।

क्यों हमने ......सोचा नहीं।

 हर आने वाली ,
 पीढ़ी पर ही,
 गलती- दर -गलती ठहराई।

परिवार तो बना लिए,
लेकिन एक -दूसरे के सम्मान पर,     
जब सवाल ही उठा दिए ।

कुछ ने अपने फायदा के लिए, परिवार में ,
राजनीतिक दल बना लिए।

एक छत के नीचे ,
एक- दूसरे से मुंह - चिढ़ा रहे।

 शायद आज........ इसलिए
 वक्त ने सब के,
 मुंह पर मास्क चढ़ा दिए।।

 जिंदगी इतनी बिखरी ,
ना घर -घर के ,
न घाट के रहे ।

अब भी वक्त है ....…!
संभल जाएं ।
घर जीवन की इकाई है।

 खुशियों के साथ ,
 मुस्करा कर,
 इसे अपनाएं ।

 घर -परिवार नाम के नहीं।
 इसे आत्मा के साथ जोड़कर,

 परिवार दिवस ,
विश्व -परिवार की तरह मनाएं।
वसुदेव -कुटुंबकम हो जाएं।।


                                          प्रीति शर्मा "असीम "


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