साहित्य चक्र

27 May 2020

ज़द बनाम हद


कोरोना ने 
अनधिकार अधिकार
कर लिया हमारी साँसों पर
मिलना जुलना, हाथ मिलाना
गले लगना और लगाना
प्यार से अथवा तिरस्कार से
रोक दिया

रोक दिया घर से बाहर निकलना
बाजार में लार टपकाना
फिसलना, निरर्थक घूमना
अखाद्य और खाद्य को खाना
घर न आने के सौ सो बहाने बनाना
रोक दिया

रोक दिया रिश्तों का 
नाजायज़ व्यापार
एक एक द्वारा छल से बसे 
कई परिवार..... संसार।

किन्तु यह कोरोना
नॉवेल ही नहीं बल्कि नोबल भी है
धर्माचरण का पोषक भी है यह
सफाई से रहने वाले
स्पर्श न करने वाले
चेहरे को ढकने वाले
इधर उधर न थूकने वाले
संयम से जीने वाले
और जूठा न खाने पीने वाले
हैं जो लोग
उनको नहीं सताती
न छेड़े कोई तो
लाज से खुद ही मर जाती।

इसलिए
है प्रबुद्ध लोगों
मत रोको कोरोना को
बल्कि रोक लो अपने आप को
और अपनों को भी
न जाओ कोरोना की ज़द में
आओ रे आओ

सामाजिक दूरी बनाकर
रह लें हम सब अपनी हद में
अपनी ही हद में।


                                    डॉ अवधेश कुमार अवध 


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