साहित्य चक्र

13 May 2020

खुल चुकी है मधुशाला




सुनी पड़ी हैं सड़कें और बंद हैं अभी भी गालियाँ,
मगर अब खुल चुकी हैं भीड़ लगाने वाली मधुशाला।

लोगों को चाहिए जहाँ अभी दवा औऱ दुआ,
वहीं अभी खुल गयी हैं जहर बेचनेवाली मधुशाला।

कैसी विडंबना है यह लोकतंत्र की देखो सभी,
दवाइयां नहीं मिल रही मगर खुल चुकी है मधुशाला।

खाने को खाना नहीं का जाप करने वाले,
भीड़ लगाए खड़े ही देखो मधुशाला की कतार में।

सब्जी और दूध खाना छोड़ दिया करके महंगाई का बहाना,
आज दौड़ पड़े मधुशाला की ओर जैसे चले हो पूरा करने जीवन का कोई अधूरा सपना।

मानवता को ताड़-ताड़ करके मानव,
चला अपनी प्यास बुझाने को मधुशाला।

कैसी विडंबना है यह सरकार की,
बंद करके मजदूरी खोल दी है मधुशाला।

अब तो हो गया कोरोना महामारी से लड़ना,
क्योंकि खुल चुकी है मौत बाँटने वाली मधुशाला।

अब तो छलक रहा है घर-घर पैमाना,
क्योंकि खुल चुकी है मानवता की दुश्मन मधुशाला।।

 
                                ✍बिप्लव कुमार सिंह


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