मिट्टी के जलते चुल्हे पर
गर्म तवे सी है
. . . . . स्त्री ।
जेठ की दुपहरी में
किसान के नंगे तलवे सी है
. . . . . स्त्री ।
सहनशीलता की घड़ी में
गिर गिर कर उठने वाली मकड़ी सी है
. . . स्त्री ।
जीवन के उलझे रहस्यों की खोज में
सुलझे शमशान सी है
. . . . स्त्री ।
मुसीबतों की धूप में
पीपल के पेड़ की घनी छांव सी है
. . . . . स्त्री ।
गति के पडा़व में
पानी के बहाव सी है
. . . . . स्त्री ।
कर्म की श्रेष्ठता का परिचय देने में
कृष्ण के गीता सी है
. . . . .स्त्री ।
संस्कार के मुल्यों में
राम के सीता सी है
. . . . . स्त्री ।
धर्म पालन की निष्ठा संजोने मे
सती अनुसुईया सी है
. . . . . स्त्री ।
प्रेम की पराकाष्ठा में
राधा के चरनों की भभूति सी है
. . . . . . स्त्री ।
ईश्वर की सभी कृतियों में
सबसे विरक्त अनुकृति सी है
. . . . . स्त्री ।
हे पुरुष ! तुम्हारे जीवन में
महान विभूति सी है
. . . . .स्त्री ।
अन्धकारमय जीवन में
प्रकाशमय ज्योति सी है
. . . . . .स्त्री ।
पतिव्रता की सिरत में
सावित्री सी है
. . . . स्त्री ।
निर्भिकता कि मुरत में
रानी लक्ष्मीबाई सी है
. . . . . स्त्री ।
क्षमा के प्रागंण में
मां के आंचल सी है
. . . . .स्त्री ।
बंजर जमीन की मांग में
सिधूरी बादल सी है
. . . . . .स्त्री ।
प्रतिशोध की अग्नि में
मां काली सी है
. . . . स्त्री ।
सुख शांति के आंगन में
रोशनी वाली दीवाली सी है
. . . . . स्त्री ।
सभी के सुख दुख में
सहेली सी है
. . . . . स्त्री ।
परन्तु हिन्दी साहित्य में
खूसरो के पहेली सी है
. . . . . स्त्री ।
कंचन तिवारी "कशिश"
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