बिटिया जब बड़ी होती है,
हर माता-पिता कन्यादान करता है,
कितनी पीड़ा होती है उनको,
जिसको पाल पोस कर बड़ा किया,
से दूसरे के हाथ सौंपता है।
कन्यादान का कर्ज,
कोई नहीं उतार सकता,
बेटी को खुशियां देकर,
मन कितना हल्का हो जाता है।
अपने घर का चिराग देकर,
दूसरे के घर में उजाला करते हैं।
कितना विशाल हृदय होगा उनका,
जो इस पीड़ा को दिखा ना पाते हैं।
कन्यादान जिसने नहीं किया,
वह इस दर्द को क्या जाने,
सौभाग्यशाली होते हैं वह मात पिता,
जो कन्यादान का सुख पाते हैं।
गरिमा
No comments:
Post a Comment