युग की कविता
ईश्वर की अद्भुत कृति का ही,नाम प्रकृति कहलाता।
समय चक्र के साथ प्रकृति का चक्र घूमता जाता।
समय सदा गतिशील निरन्तरआगे बढ़ता रहता।
और सदा इतिहास अनूठे,जग में गढ़ता रहता।
इसी समय के काल खंड को ज्ञानी हैं युग कहते।
सतयुग,त्रेता, द्वापर,कलयुग, क्रम से आते रहते।
हर युग की है अवधि सुनिश्चित ग्रंथ यही बतलाते।
उसी अवधि के निश्चित क्रम से, युग आते युग जाते।
हर युग में लोगों ने स्वर्णिम नव इतिहास गढ़े हैं।
ज्ञान,बुद्धि,बल निज पौरुष से, दुर्गम शिखर चढ़े हैं।
हर युग की गत गौरव गाथा,प्रति पल गाई जाती।
समय,परिस्थिति औ प्रसंग बश, वह दुहराई जाती।
हर युग की अपनी मर्यादा,युग की अलग महत्ता।
नियम,नीति पालन में बदलीं,समय-समय पर सत्ता।
युग के अपने काल खंड के,अपने-अपने नायक।
लेकिन जो दुनिया के नायक,वह हैं श्री रघुनायक।
श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'
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