साहित्य चक्र

24 May 2020

उम्मीद का सूरज उगेगा...


उम्मीद का सूरज
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रात काली है भयानक घन घटा घन घोर है।
उल्सुओं चमगादड़ों का बस भयानक शोर है।
किन्तु धीरज मत डिगाना,यह तिमिर भी डर भगेगा।
उन्मीद का सूरज जगेगा।

कष्ट औ' संघर्ष की है,छा रही काली घटायें।
आज सिर पर डोलती हैं,घात करतीं आपदायें।
है हमें विश्वास दुख का,धुंध इक दिन तो छँटेगा।
उम्मीद का सूरज उगेगा।

उम्मीद का दामन पकड़ ले, धैर्य को निज थाम ले।
कर्म पथ पर चल विहँस कर,ईश का तू नाम ले।
देख तेरा हौसला अब,यह अँधेरा ना टिकेगा।
उम्मीद का सूरज उगेगा।

गाएगा फिर गीत मधुरिम,डाल पर पंछी विहँस कर।
बाँध कर घुँघरू सुरीले,वायु नाचेगी थिरक कर।
लालिमा से युक्त आनन,पूर्व का फिर हँस उठेगा।
उम्मीद का सूरज उगेगा।

                                 श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'


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