साहित्य चक्र

12 May 2020

बहन का त्याग...

      


लाला अमर चंद महाजन के दिवंगत हो जाने के बाद उनके व्यापार का सारा भार उनके बेटे विमल चंद के कंधों पर आ गया था।लाला अमर चंद का व्यापार बहुत बहुत फैला हुआ था।बे शहर के बड़े व्यापारी थे।इतने बड़े व्यापार को सम्हालने बाला था केवल उनका बेटा विमल चंद।बैसे उनकी एक बेटी भी थी,सुनयना।किनितु उसकी शादी हो चुकी थी।विमल चंद ने उसे व्यापार और प्रापर्टी से दूर ही रखा। विमल चंद के मनमें लीलच आ गया।उसने अपने मनमें सोच लिया था कि वह सुनयना को इस प्रापर्टी से कुछ भीनहीं देगा। हाँ! यदि वह वैधानिक रूप से कुछ कार्यवाही करेगी तब देखा जायेगा।

धीरे-धीरे समय निकलने लगा।सुनयना अपने भाई -भाभी का हाल-चाल लेती रही।समय -समय पर आती -जाती रही।किन्तन विमल चंद ने कोई उत्साह नहीं दिखाया।सुनयना के पति को व्यापार म्म घाटा पर घाटा आता गया।और एक दिन उनका सारा काम धंधा ठप्प हो गया।सुनयना बहुत परेशान रहने लगी।सुनयना की ऐसी हालत देखकर एक दिन विमल चंद की पत्नी ने कहा ,  " सुनो जी! इस समय सुनयना कीहालत ठीक नहीं है।वह रुपये पैसे के लिये बहुत परेशान है।उससे इस समय कम ही सम्बंध रखो।नहीं तो हमीं से कुछ माँगने लगी तो।"  "बात तो तुम ठीक कहती हो सुनंदा। हमें उससे इस समय कम ही मतलब रखना है।बुराई भी न हो और हम मुसीबत से भी बचेंगे।" विमल चंद विषैली मुस्कान लेते हुये सुनंदा की बात का समर्थन किया।

जब सुनयना बहुत परेशान हो गई तो एक दिन वह अपने पति से कहने लगी , "क्यों जी? ऐसे कब तक चलेगा।अब तो मुझसे बच्चों की यह हालत देखी नहीं जाती।उनके खेलने खाने केदिन हैं।और हम उन्हें भर पेट खाना भी बड़ी मुश्किलसे देपाते हैं।"  " तुम ठीक कहती हो सुनयना मुझे भी यह अच्छा नहीं लगता।क्या करूँ पूरा प्रयास कर रहा हूँ।किन्तु व्यापार में को ई सफलता ही नहीं मिल रही।कहो तो मैं अपने रिस्तदारों से कुछ मदद मांगूँ।" 

 " नहीं जी! हमें अपने हिस्से का संघर्ष स्वयं ही करना चाहिये।ऐसे में कोई रिस्तेदार सहयोग नहीं करता और उपहास ही करते हैं।"  " अब तो मेरा मन करता है कि यह जगह ही छोड दूँ।कहीं बड़े शहर में हमें हाथ पाँव मारने चाहिये।"   " जैसा आप उचित समझें " सुनयना बच्ची को गोद में उठाते हुये बोली।

समय बीतता गया।स्थितियाँ - परिस्थितियाँ बनती बिगड़ती रहीं।इधर बहुत दिनों के बाद एक दिन विमल चंद ने अपनी पत्नि सुगंधा से कहा, सुगंधा बहुत दिनों से सुनयना का कोई हाल चाल नहीं मिला।मुझे तो पता चला है कि वे लोग शहर छोड कर कहीं और चले गये हैं।"उदास होते हुये विमल चंद ने कहा।

विमल चंद ने अपना व्यापार बहुत बढ़ा लिया था।सारा रुपया पैसा,जेबर,प्रापर्टी सब व्यापार में लगा दी।अब विमल चंद शहर के बड़े व्यापारियों में गिने जाते थे।

समय पता नहीं कब किसका क्या हाल कर दे कुछ नही कहा जा सकता।एक दिन माल से भरी गोदाम मे बिजली के तारोंसे आग लग गई।सारा माल जल कर राख हो गया।करोड़ों का विमल चंद खाक में मिल गया। यह बात सच है जब समय खराब आता है तो अपने घनिष्ठ भी साथ छोड़ जाते हैं।इसे विमल चंद से अधिक कौन जान सकता है।विमल तंग ने अपनी बेटी की शादी सहारनपुर के जिस बड़े किराना व्यवसायी के लड़के से तय की थी वह अपनी बात से मुकर गया।उसने रिस्ता तेड़ दिया।सब कुछ उलट पलट गया। फिर एक दिन अचानक टेकचंद का फोन आया।कि वे शादी के लिये तैयार हैं।शादी के खर्चे की सारी व्यवस्था हो गई है।आप बस अच्छा सा मुहुरत देखकर लड़की के साथ सहारन पुर आ जाइये।विमल चंद हैरान यह पाँसा कैसे पलट गया? खैर....

शादी बड़ी धूम धाम से हो रही थी।सारी व्यवस्था उन्बीं री थी।जब जयमाला  और फेरों के बाद बिदाई की बेला आई तो दुल्हन के रूप मे अपनी बेटी को सुनयना के साथ आते हुये देख कर विमल चंद कुछ सकपका गया।वह कुछ समझ नही पा रहा था।अचानक सुनयना कोसामने देख कर वह सुनयना से लिपट कर गया। सुनयना भी भाई के गले से लिपट कर रोने लगी।तभी टेकचंद ने आकर बताया, "भाई यह शादी सुनयना जी के कहने पर ही हो रही है।सारी व्यवस्था इन्हीं की ही है।यह गैस्ट  हाउस सुनयना जी का ही है।विमल चंद और सुनंदा अपराधी की भांति उसके पैरों पर गिर कर रोने लगे।सुनयना ने दोनों को उठा कर कहा, " भैया -भाभी उठिये समय कभी किसी का एक सा नहीं रहता,किन्तु हमारा रिस्ते का बंधन तो अटूट है।हमारा रिस्ता खून का रिस्ता है।हमें इस "अटूट बंधन" से कोई अलग नहीं कर सकता।समय भी।" कह कर सब  अपने आंसू पोछने लगे।

                                         श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल"


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