साहित्य चक्र

24 May 2020

कोमल बदन



तपती सड़क है और पांव हैं नन्हें कोमल से
मंजिल है अभी दूर छांव नजरों से ओझल से


कि चल पड़े हैं कुछ लोग शहर से गांव की ओर
मिल जाय कहीं शायद जो अच्छे दिन है ओझल से


फूलों के इस सफ़र पे भी हंस रहें हैं चंद मरे लोग
दिल नहीं सीने में जिनके और आंखें है बोझिल से


काश बरस जाय अब अब्र इन आखों की नमी लेके
फूलों, कलियों को जाना है दूर लेकर बदन कोमल से

                                        सिद्धार्थ


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