मानुष जन्म जो मिला आज,
न अपने को तू महीपति समझ।
हरिप्रिया जो पास है कल भी बनी रहे,
अलंकार कर माटी का,तू कर श्रम- तू कर श्रम।।
साधक है तू इस धरा पर,
संताप का अपने न बखान कर।
भूमिपुत्र तू विधाता बन अपना,
न तू कृपापात्र बन, तू कर श्रम- तू कर श्रम।।
साधक को विश्राम नहीं यहां,
कर्म पथ पर बढ़ निरंतर शैलजा सा।
अभिलाषा रख बस विष्णुपगा सी,
बरस धरा पर पयोधर बन, तू कर श्रम- तू कर श्रम।।
भर उड़ान विहंग सी छू ले क्षितिज,
संकल्प रख अटल हिमगिरि सा।
पान करना पड़े क्यों न हलाहल का,
बह समीर सा,कर पावन हर मन,तू कर श्रम – तू कर श्रम।।
कला भारद्वाज
No comments:
Post a Comment