प्यार की रस्म
प्यार की रस्में निभाने चले आओ
हैं रुठे से हम मनाने चले आओ..
रह-रहकर अनल दहकती धड़कनों में
आग के जलसे बुझाने चले आओ..
मेरे मन की नांव भँवर में डोलती
आप हो मेरे बताने चले आओ..
कितनी बेचैनी दिल में मेरे सखे
आज तो इनको मिटाने चले आओ..
तड़पती रहती बिना प्राण 'आईना'
यार तुम अपना बनाने चले आओ..
अनामिका वैश्य आईना
No comments:
Post a Comment