साहित्य चक्र

02 May 2020

प्यार की रस्में

प्यार की रस्म


प्यार की रस्में निभाने चले आओ
हैं रुठे से हम मनाने चले आओ..

रह-रहकर अनल दहकती धड़कनों में 
आग के जलसे बुझाने चले आओ..

मेरे मन की नांव भँवर में डोलती 
आप हो मेरे बताने चले आओ.. 

कितनी बेचैनी दिल में मेरे सखे
आज तो इनको मिटाने चले आओ..

तड़पती रहती बिना प्राण 'आईना' 
यार तुम अपना बनाने चले आओ..

                                       अनामिका वैश्य आईना


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