अंतर्द्वंद निरंतर मन में
युद्ध स्वयं का संयम से
परिस्थितियां कितनी विषम
प्रश्न अनकहे जाने कितने
सूझे ना मार्ग कोई
उजाले लगे अँधेरे से
शून्य मन-मस्तिष्क भी
हंसी में नहीं ठहाके से
नीर नयन का सूख चला
अधरों से ना बात बने
जाने कैसी परीक्षा ये
हौसला ना अब साथ दे
जीवन डगर नहीं सीधी
मिले चुनौती हर मोड़ पे
ले ना जाए पथ किसी मंज़िल
हो गए गुमशुदा क्या सब रस्ते
विनीता पुंढीर
wow u wrote very beautiful Vineeta ji
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