इतना आसान नही होता, लड़का होना,
जो जिंदगी भर जिम्मेदारी निभाता है।
वो भी भला कहाँ,
अपने लिए कभी जी पता है।
बचपन से एक तामील मिली,
की लड़का कभी नही रोता है।
दर्द को सहना सीखो,
आदमी कभी कमज़ोर दिल नही होता है।
ये बनावटी ठोंग उसे ,
कभी जज्बात ज़ाहिर ही नही करने देते।
आखिर लड़के भी कहाँ ,
अपने मन की बात किसी से कह पाते है।
किसने कहाँ सपने इनके,
कभी अधूरे नही रहते।
एक लड़के के भी भला ,
कहाँ ख्वाब पूरे होते है।
बचपन से जहाँ डॉक्टर, इंजीनियर,
बनने का बोझ थमा दिया जाता है ।
कभी किसी ने पूछा इनसे,
इनका दिल क्या बनने को चाहता है।
नोकरी की तलाश में अक्सर,
ये घर से निकल जाते है।
पैसे नही होने पर,
जो कई बार भूखे भी सो जाते है।
लेकिन ये बात भी कभी,
माँ बाप को नही बताते है।
बहुत अच्छा हूँ यहाँ पर मै माँ,
आँखों मे नमी लेकर ,बस यही जवाब दे जाते है।
बुरे वक्त में अक्सर प्यार और दोस्ती,
सब लोग साथ छोड़ जाते है।
लेकिन ये लड़के कहाँ,
अपने दिल का दर्द किसी को सुना पाते है।
जिम्मेदारी का बोझा लेकर,
वो तपते शरीर से भी ,काम पर जाते है।
कभी किसी ने पूछा इनसे,
आखिर क्यों ये, रात को 2 बजे तक सो नही पाते है।
बहन की शादी,बच्चो की फीस,
माँ बाप की दवाई और पत्नी की ज़िद।
बस यही तक खुद की जिंदगी,
जो सीमित कर जाते है।
अपनी ख्वाईशो का गला घोंट कर,
जो अपनो के लिए जीते जाते है।
शायद इसलिए ही लड़के,
घर का चिराग कहलाते है।
इतना आसान नही होता, एक लड़का होना,
जो जिंदगी भर अपनी जिम्मेदारी निभाते है।
वो भी भला कहाँ ,
अपने लिए कभी जी पता है।
ममता मालवीय 'अनामिका'
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