फागुन में लग गई लगन
मौसम के हाथ हुए पीले।
बालियाँ जवान हो गईंं,
रात-रात देखतीं सपन,
अंग-अंग उम्र का नशा,
पोर-पोर चंपई छुवन।
कान तक खिंचें हैं काम-बान,
फूलों के वक्ष हैं नुकीले।
मौर बाँध सज गया रसाल,
पवन गाये गीत मंद-मंद,
गदराई सरसो झुकी,
नहीं मानती कोई बंध।
मल गया कोई गाल पे गुलाल
संयम के पेंच हुए ढ़ीले।
पिचकारी नेहभरी,
ऊपर उड़ेल गया,
फगुनाया देवर भी,
खेल नया खेल गया,
घोल गया मन में मिठास,
पपिहा के बोल हैं रसीले।
अशोक मिश्र
No comments:
Post a Comment