आज हमारा समाज जिस दौर से गुजर रहा है उसमें भारतीय नारी का महत्वपूर्ण योगदान है ! कभी वह समय था जब नारी का क्षेत्र शिक्षिका या नर्स बन जाने तक सीमित था ! किन्तु अब वह हर क्षेत्र में सक्रिय है ! वह अपने घर - परिवार के साथ - साथ समाज एवं राष्ट्र के प्रति अपने दायित्व को निभाने मे पूर्णतया सजग है !
इतना सब होने पर भी चिंता का विषय यह है कि देश का तथाकथित प्रगतिशील पुरूष वर्ग नारी के प्रति अपनी परंपरागत दृष्टिकोण को बदल नहीं पाया है ! वह आज भी उसे भोग्या ही समझा जाता है ! उसकी कोमलता से अनुचित लाभ उठाने का प्रयास करता है ! आज आवश्यकता इस बात की है कि पुरूष वर्ग नारी को मुक्तभाव से निर्भय होकर कार्य करने का अवसर प्रदान करे ! पुरूष को सदैव से शक्तिशाली माना जाता रहा है और स्त्री को अबला नारी ! आज के युग में नारी को कोई सम्मान नहीं मिलता !
महिला उत्पीड़न का मूल कारण उसकी शारीरिक स्थिति और सामाजिक मापदंड है ! पतियों द्वारा पत्नियों की पिटाई, युवतियों का बलात्कार, दहेज के लिए की गई बहुओं की हत्या, बाल विवाह आदि इसके कुछ ज्वलंत उदाहरण है ! घरेलू कार्यों का अधिकतर बोझ उन्हीं के कंधों पर रहता है ! लङकीयो के शिक्षा कम ध्यान दिया जाता था !
कई महिलाओं के उनके पुरूष सहकर्मी भी कम परेशान नहीं करते ! प्राकृतिक तथ्य है कि नारी कोमलकांता होने के साथ- साथ अपने स्वभाव में अधिक कर्मठ एवं सहनशील होती है ! धैर्य भावना भी उसमें अधिक होती हैं ! इसलिए राष्ट्र निर्माण के कार्यों में वह पुरूषों की अपेक्षा अधिक सहायक सिद्ध होने मे समर्थ है ! आज आवश्यकता इस बात की है कि नारी शिक्षा का अधिकाधिक विकास कर उसकी क्षमता को विकसित किया जाय ताकि राष्ट्र निर्माण के कार्य में पुरूषों से ज्यादा सिद्ध हो सके !
स्त्रियों पर लग रहे अंकुश से समाज मे 2012 वर्ष दिल्ली मे हुए दामिनी गैंगरेप से महिलाओं की स्वतंत्रता पर सवाल उठ रहे हैं ! इसके विरोध में पुरूषों एवं महिलाओं का कठोर कानून बनाने के लिए धरना एवं प्रदर्शन किया गया था ! इस तरह का कांड अब न हो इसके लिए हमें अपनी सोच बदलनी होगी !
रूपेश कुमार
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