हे ! ईश्वर
सिद्धों की वाणी में
नाथों के चिमटे में
योगियों के योग में
देखा है मैंने तुमको
हर एक इंसान में।
कुंडलिनी के जागरण में
सहस्त्रार के गमन में
त्रिनेत्र की ऊर्जा में
आज्ञा चक्र की आज्ञा में
हर पल महसूस किया है
मैना तुम्हें
उस विद्युत ऊर्जा में।
मूलाधार की सौंदर्य लहरी में
विशुद्धा की शुद्धता और स्वच्छता में
अनाहत के आनंदमई भेदन में
जाना है मैंने तुमको
स्वाधिष्ठान की पंच विद्याओं में
मणीपूरक की तेजसि्वता में।
राजीव डोगरा 'विमल'
No comments:
Post a Comment