साहित्य चक्र

20 March 2020

ख्वाब आग उगलते है



जिस्मों से निकलकर रूह छटपटाती है,
जुगनुओं वाली मोहब्बत दिल जलाती है।

रोमियो जूलियट लैला मजनूं शीरी फरहाद,
हुए हैं सब इसी मोहब्बत के हाथों बर्बाद।

ख्वाब गाह में ख्वाब आग उगलते है,
हम ही जलाते है और हम ही जलते हैं।

ख्वाहिशों वाली रात झिलमिलाती है,
जब चाँदनी मेरे बदन को झुलसाती है।

कोयल मूक मयूर पंगु पपीहा प्यासा है,
कैसे कहे दिल कि तेरे मिलन की आशा है। 

तुझे शायद ये खबर ना होगी याद तेरी, 
स्वाती की बूंद बन प्यास मेरी बुझाती है। 

जिस्म जलता है सांसे जहर उगलती है, 
याद तेरी कभी बहलती कभी बहलाती है। 

                       आरती त्रिपाठी 


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