धूप
अलसुबह निकली धूप
दिन के तीसरे पहर तक
थकान ओढ़ लेती
ज्यों-ज्यों दिन ढलता
आलस से भरी
धूप...
चढ़ जाती
पेड़ पर
टहनियों पर
टांग पसार कर
पूरे एक पहर...
पड़ी रहती।
खेलने आए
बच्चों के
शोरगुल से जग कर
आँखें मिचमिचाते हुए
बड़बड़ाती
धूप...
शैतानों की टोली
कह मुस्कुराती
और
धप्प से उतर जाती
धूप।
बच्चे देखते-
ऊपर-नीचे
आगे पीछे
कहाँ गया
कौन था
यहाँ-वहाँ
फ़िर रम जाते खेल में।
धूप...
किरणों को समेटती
निकल पड़ती
हौले-हौले
पश्चिम को,
कल अलसुबह
यही सफर
पूरब से
फिर करने को।
अनीता मैठाणी
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