“बेबस मज़दूर”
अमीर बैठा अपने ही घर में
और गरीब को बेघर कर दिया,
खुदा कैसा कहर तूने ये ढाया
गरीबों को अपने से दूर कर दिया।
भीड़ हज़ारों की है सड़क पर
घर जाने की उम्मीद में दौड़ रहे,
ये कैसा लॉक डॉउन हुआ यहां
गरीबों को भागने पर मजबूर कर दिया।
बेबसी ने ये कैसी हालात कर दी
सड़कों पर इनका डेरा लगा दिया,
भूख,प्यास से तड़प रहे हैं सब
ग़रीबी को इनकी मंज़ूर कर दिया।
रूह कांप उठती है सोच कर इनके हालात
न काम रहा, और न ही घर पहुंचे,
कर्णधार है ये इस देश के,
फिर भी व्यवहार इनसे क्रूर कर दिया।
माना कि कदम उठाए जा रहे है इनके लिए
पर ये काबिले तारीफ़ भी नहीं,
ज़रूरत है कुछ सख्त कदम उठाने की
क्यों कि हालातों ने इनको चूर कर दिया।
' कला भारद्वाज'
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