सुनो - सुनो हम आज बताते, एक पुरानी गाथा,
बुआ जलाने चली भतीजा, पर ये होना ना था।
हिरण्यकश्यप के अभिमान आग जली होलिका,
चाहा था प्रहलाद जलाना पर ये होना ना था।।
दयानिधि करुणा के सागर नारायण की लीला थी,
जन्मा घर प्रहलाद निशाचर नारायण की लीला था।
नारायण अस्तित्व मिटाकर 'हिरण्य' ईश्वर बनना चाहा,
मिटा स्वयं ही वैर साधकर नारायण की लीला थी।।
पहले समझाया प्रहलाद को हरि का भजन करो ना,
सब निशचर मुझको जपते हैं मेरा वंदन तुम करो ना।
प्रहलाद ने बतलाया कि नारायण का नाम सत्य है,
धमकाया हिरण्यकश्यप ने हरि का भजन करो ना।।
हरि भक्त ने बात न मानी हिरण्य तब घबराया था,
सारे निशचर ईश्वर कहते प्रहलाद ने तात बुलाया था।
पूजा होती थी जिस नगरी अभिमानी बलवान की,
वहीं पे हरि नाम की ज्योति प्रहलाद ने जलाया था।।
प्रदीप कुमार तिवारी
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