धवल चाँदनी सम निश्छल है जिसका आँचल
जहाँ बिछा रखा है क़दरत ने सुन्दर आँचल।
औषधियों से भरा हुआ है जिसका तन
देवभूमि ये पाक़ धरा, क़दरत का है गर्व हिमाचल।
उन्नत खड़ा हिमालय देखो,ओढ़े हिम की चादर
मिलने को व्याकुल हैं दिखते, काले-गोरे बादर।
कैसे करूँ बडाई मैं, धीर-वीर इस हिम की
जहाँ कल-कल करती लगती सरिता, जैसे सुन्दर काजर।
देवभूमि यह धरा है पावन हर मौसम यहाँ लगे है सावन।
देवदारु से ढकी चोटियां लगती है पावन मनभावन।
ऊँचा- नीचा चौडा रस्ता दर्शन तेरा नहीं है सस्ता।
औषधियों से भरी चोटियां रूप लगे है हिम का हँसता।
कवि अमर 'अरमान'
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