विषैली वायु हर पल अब उपजे
सघन वन प्रान्त जब से उजाड़े ।
रहे विपिन प्राणवायु के द्योतक
फिर भी कुल्हाड़ी चला दी इनपर।
रक्तिम कतरा लिए रो रहा बीहड़
अब न उजाडो रोक सब विनाश ।
तरुवर से है श्रृंगार हर बीहड़ का
जन जन पर बड़ा उपकार वनों का ।
जीवन की है सब आपूर्ति बीहड़ से
करो न अब इनका विनाश जड़ से।
अंकित परोक्ष है ये अमिट इतिहास
मिले जन-जन को तरुवर से श्वास ।
उपजे वनस्पति जीवन की धारा
गुण बीहड़ के हैं शतकोटि अपारा।
संजो रख दुर्लभ औषधि धरा पर
जनजीवन सब टिका है इन्हीं पर ।
राज शर्मा
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