मत काट ये झाड़ पेड़
उन्होंने तेरा क्या बिगाड़ा है
तेरे जन्म से तेरे अंत तक
बस उनका ही सहारा है
तुझे सांसे देने वाला वो
अंतिम सांसे भर रहा है
अब तो रुक जा मानव
देख ये पर्यावरण मर रहा है
कल कल करती नदिया को
क्यों अपनी माता कहता है
मत भूल उन्हीं के जल से
तू इस जग में जिंदा रहता है
उनको गंदा करके क्यों तू
अमृत को विष कर रहा है
अब तो रुक जा मानव
देख ये पर्यावरण मर रहा है
ये मिट्टी सोना तो देती है
तू फिर भी लालच करता है
उत्पाद बढ़ाने के चक्कर में
तू उसमें रसायन भरता है
यूं दवा डाल डालकर बस
तू उसको बंजर कर रहा है
अब तो रुक जा मानव
देख ये पर्यावरण मर रहा है
✍️ नीलेश मालवीय "नीलकंठ"
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