साहित्य चक्र

30 March 2020

बात - बात पर धमकी देती

मार्ग में बाधा ऐसे दिखती , जैसे कोई हो हाँथी।
खुशहाली  जीवन जीने  को , ढूँढ़ रहे हैं साथी।।

रोज  सवेरे   तेरे  घर  के, चक्कर   हमनें  काटे  थे।
सुख - दुख भी हम मिलजुलकर एक दूजे से बाँटे थे।।

छोड़ गई तुम बीच राह में, मैं भूल तुम्हें ना पाऊँगा।
तुमको  तेरे  बाप  घर  से, उठवाकर  मैं  लाऊँगा ।।

बात - बात  पर  धमकी  देती, शाम - सवेरे मरने की।
मुझमें ताकत नही बची है, प्रेयसी  तुमसे  लड़ने की।।

जितनी तड़पाओगी मुझको, प्यार उतना ही गहरा होगा।
तेरे  घर  पर  चौबीस  घंटे, तेरे  बाप  का  पहरा  होगा।।

रोके कोई रोक सके ना, मैं तुमसे मिलने आऊँगा।।
तुमको  तेरे  बाप  घर  से, उठवाकर  मैं  लाऊँगा ।।

एक बार  प्रेयसी मेरेे, खुशहाली से बोल दो मीठी बोली।
हँसते  -  हँसते  मर  जाऊँगा,  बम   चले  या   गोली।।

मरते - मरते भी प्रेयसी, मैं  गीत तुम्हारा गाऊँगा।
तुमको  तेरे  बाप  घर  से, उठवाकर  मैं  लाऊँगा ।।

                     ✍️... गौतम कुमार कुशवाहा


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