हाँ मैं नारी हूंँ,
मुझसे ही है पुरुषत्व तुम्हारा,
तुम्हारी ही तरह मैं भी,
हर चीज की अधिकारी हूँ।।
क्यों जरूरत आ पड़ी,
महिला दिवस मनाने की?
जबकि मैं जरूरत हूँ,
युगों से इस ज़माने की।।
मनाना ही है तो फिर,
पुरुष दिवस भी मना कर देखो,
महिलाओं के प्रति अपनी,
इस नीच सोच को भगा कर देखो।।
शिविर लगाओ पुरुषों के भी,
अपनी मानसिकता को बदल दो।
नारी बिना तुम कुछ नहीं,
अहम में जीना छोड़ दो।।
नहीं मैं मानती इस दिन को,
क्या ये कोई त्योहार है?
करते हो यदि सम्मान मेरा,
फिर क्यों अलग ये व्यवहार है?
"कला भारद्वाज"
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