अपने -आप में,
एक सम्पूर्ण कहानी।
इसी का नाम है नारी।।
जीवन की संवेदना,
मर्म की मूक निशानी।
भाव-मय ,
ममता-मूरत,
समर्पित जीवन की रवानी।।
इसी का नाम है नारी।
कितने रूपों में,
समा जाती .
जीवन को,
स्वर्णिम कर जाती।
घर की परिकल्पना,
तुम्हीं पर धरी जाती।
पूजित हर पल ,
हर कहीं जाती।
सृष्टि को सृजित कर जाती।
कुछ शब्दों में,
कैसे तोलू,
नपे- तुले शब्दों में,
कैसे बोलूं।
सिर्फ एक दिन तेरे नाम करूँ।
क्यों.......?
ईश्वर का गुनाहगार बनूँ।
तुम तो,
हर शब्द में,
हर दिन में,
हर -पल में समाती हो।
जीवन की,
परिपाटी।
अनुपम कल्पना।
इसी का नाम है नारी।
इसी का नाम है नारी।।
- प्रीति शर्मा
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