मेरे अनसुलझे सवाल
वह अनकही तुम्हारी
समझकर अनसुना करना दे गया आघात
यह सिलसिला चलता रहा सारी रात
और भीगी पलकें बहती रही दिन रात
मेरे बाबा से मांगा था मेरा हाथ
पर जीवन में ना थी प्यार की बरसात
मेरे हर परेशानी में तुम बने रहे अनजान
होकर नादान, पर अब नहीं सहना ..
दुर्गा बनकर रहना
अब ना याद है फेरो की रस्मे ना सहने की शक्ति है
वादे रस्मे भूल गई, अब जागी नारी शक्ति है।
अंशु शर्मा
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