साहित्य चक्र

30 March 2020

नहीं खुलती हैं खिड़कियां

*कोराना*



सहमी सी सुबह है,सूनी- सूनी शाम है ।
गतिमान समय में,कैसा ये विराम है ।।


दरवाजे बंद ,नहीं खुलती हैं खिड़कियां ।
सन्नाटा बोलता है,चुप -चुप हैं तितलियाँ।।
दौर कैसा आया,डरे -डरे शहर , ग्राम हैं!
सहमी सी सुबह है,सूनी -सूनी शाम है ।।


लगता था बहुत बड़ा अपना, विज्ञान है ।
संचित है कोष बड़ा ,विश्वव्यापी ज्ञान है।।
छोटा सा कोराना,मचाये कोहराम है।
सहमी सी सुबह है,सूनी सूनी शाम है ।।


पुलिस जवान लाठी ले ,गली -गली घूमते ।।
तालाबंदी देश में,मास्क मुंह को चूमते ।।
विधाता ही जाने ,क्या इसका अंजाम है!
सहमी सी सुबह है,सूनी सूनी शाम है ।।


                                    रागिनी स्वर्णकार

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