साहित्य चक्र

07 August 2021

* प्रकोप *


थम नहीं रहा यह प्रकोप, 
जीवन विहीन किए हैं कितने ?
अब तुम ही बचाओ,
 ए रघुवर !

 देखो कितने घर बिखर चुके ?
माँओ ने भी बच्चे खोए हैं ,
चारों तरफ रुदन मचा है !
अब जल्दी आओ,
 ए रघुवर !

हमने कितने अपराध किए ?
पर अब हम समझ चुके !
अभी हमको शरण में ले लो,
संकट काटो,
 ए रघुवर !

इस प्रकोप ने जीवन सबका,
 कर दिया बहुत गमगीन !
अब हम हार चुके हैं ,
जल्दी आओ ,
ए रघुवर !

बच्चे कितने बिलख रहे ?
साँसे उनकी थम सी रही हैं!
अब न मुझसे देखा जाए,
दया करुणा बरसाओ
 ए रघुवर !


                                  डॉ माधवी मिश्रा 'शुचि'


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