थम नहीं रहा यह प्रकोप,
जीवन विहीन किए हैं कितने ?
अब तुम ही बचाओ,
ए रघुवर !
देखो कितने घर बिखर चुके ?
माँओ ने भी बच्चे खोए हैं ,
चारों तरफ रुदन मचा है !
अब जल्दी आओ,
ए रघुवर !
हमने कितने अपराध किए ?
पर अब हम समझ चुके !
अभी हमको शरण में ले लो,
संकट काटो,
ए रघुवर !
इस प्रकोप ने जीवन सबका,
कर दिया बहुत गमगीन !
अब हम हार चुके हैं ,
जल्दी आओ ,
ए रघुवर !
बच्चे कितने बिलख रहे ?
साँसे उनकी थम सी रही हैं!
अब न मुझसे देखा जाए,
दया करुणा बरसाओ
ए रघुवर !
डॉ माधवी मिश्रा 'शुचि'
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