साहित्य चक्र

29 August 2021

"हम ही आज है, कल भी हम ही है"



हम ही आज है, कल भी हम ही है..!
हम ही रीत है, रिवाज भी हम ही है..!!

हम ही आजादी है, बेडियां भी हम ही है..!
हम ही पंछी है, पिजरा भी हम ही है..!!
  
हम ही अभिमन्यु है, चक्रव्यूह भी हम ही है..!
हम ही मोहन है, बाँसुरी भी हम ही है..!!

हम ही पेड़ है, कुल्हाड़ी भी हम ही है..!
हम ही नफ़रत है, प्रेम का प्रतीक भी हम ही है..!!

हम ही तो आशा है, निराशा भी हम ही है..!
हम ही तो पाप है, पून्य भी हम ही है..!!

हम ही नदियों की कलकल है, अशुध्दियाँ भी हम ही है..!
हम ही आस्तिक है, नास्तिक भी हम ही है..!!

हम ही छल है, निच्छल भी हम ही है..!
हम ही विध्या है, अनपढ़ भी हम ही है..!!

हम ही धूप है, छाँव भी हम ही है..!
हम ही शहर है, गाँव भी हम ही है..!!

हम ही गीता है, कुरान भी हम ही है..!
हम ही अपराध है, कानून भी हम ही है..!!

हम ही सत्य है, असत्य भी हम ही है..!
हम ही अधर्म है, धर्म भी हम ही है..!!

हम ही शहद है, नीम भी हम ही है..!
हम ही राजा है, फकीर भी हम ही है..!!

हम ही जानकी है, सुपर्णखा भी हम ही है..!
हम ही रावण है, लक्ष्मण रेखा भी हम ही है..!!

हम ही आर्यवर्त है, हिन्दुस्तान भी हम ही है..!
हम ही जमीं है, आसमान भी हम ही है..!!

हम ही प्रकृति है, नारायण भी हम ही है..!
हम ही आज है, कल भी हम ही है..!!


                                                कुमारी आरती सिरसाट


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