एक सच्चा छायाकार
होता है संवेदनशील
अपने पेशे के प्रति वफादार,
लोभ और भय से
ऊपर होता है उसका ईमान।
उसका कैमरा उसकी इबादत,
उसका जमीर, उसकी उल्फत।
सिर्फ नेताओं मंत्रियों की तस्वीरें और
अफसरों की वाहवाही के लिए
वह आगे पीछे नहीं दौड़ता,
खेतों में हल जोतते किसानों
धूप में पसीना बहाते मजदूरों
अनाथ बच्चों, भूखे नंगों
की कहानी सामने लाता है छायाकार।
प्रवासी मजदूरों के दुख दर्द को
हम कैसे जान पाते,
अगर छायाकार ने न ली होती
उसकी तस्वीरें।
थाने में औरत के साथ जुल्म
दंगाबाजो का हुजूम
दरिंदों के हाथों अपनी आबरू बचाने
बीच सड़क पर नंगी दौड़ती किसी लक्ष्मी की तस्वीर
लेने से कब पीछे हटा छायाकार ?
देश की सरहदों पर फौजियों की देशभक्ति
महामारी, बाढ़, भुखमरी, ढहती मस्जिद,जलती होटल
संसद पर हमले सब कुछ हम देख पाते हैं,
नहीं देख पाते कौन था छायाकार ?
एक्टर डायरेक्टर सभी जानते हैं
उनकी फिल्में सफल न होती,
अगर साथ न होता उनका छायाकार।
निर्मल कुमार दे
No comments:
Post a Comment