साहित्य चक्र

08 August 2021

मैं स्त्री हूं।



हां मैं स्त्री हूं
दादी, नानी, चाची, मामी,पत्नी, बेटी,
बुआ, मौसी,बहन, भाभी , बहू ,सास और साथ में मां
ना जाने कितने अनगिनत और भी होंगे रिश्ते 
हर रिश्ते को अपने भीतर
संजोए रखना,
हर किसी का सम्मान करना
हर तरफ खुशियों की सोचना
हर रिश्ते के सुख-दुख को समझना
हां मैं स्त्री हूं
ये सब तो धर्म है मेरा।।

कभी बेटी बन चहकना
कभी बहन बन इठलाना
कभी बुआ - मौसी बन इतराना
तो कभी बहू - पत्नी होने का सम्मान पाना
कभी मां बन बच्चों संग बच्चा बन जाना
कभी रूठे को मनाना
तो कभी खुद रूठकर 
अपने होने का प्रमाण देना
हां मैं स्त्री हूं
ये सब तो सौभाग्य है मेरा।।

सुबह उठ चौका संभालना
रात को उसे समेटना
और उसके बीच 
ना जाने कितने कामों का आ जाना
हर मौसम का आकर चले जाना
समय कहां उड़ चला पता न चलना
चाहे मैं घरेलू महिला हूं या कामकाजी
क्यूंकि
हां मैं स्त्री हूं
ये सब तो स्वाभिमान है मेरा।।

                             तनूजा पंत


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