साहित्य चक्र

08 August 2021

टूटा तारा


आसमान से टूटा जो तारा
ज़िन्दगी का एहसास करा गया
आंखों में आंसू आ गए
फिर बिछड़ा कोई याद आ गया

न जाने कहाँ हो गया गुम
जो था कभी आस पास
तन्हा छोड़ गया हम सबको
जिसने किया सबको उदास

टूटे तारे भी कभी रौशनी से
थे आसमान में टिमटिमाते 
टूटे जो एक बार
तो फिर कभी जुड़ नहीं पाते

अपनी न सही उनकी चाँद की
रोशनी से ही टिमटिमाते थे
सौर मण्डल के लिये थे सब कुछ
अपनी पूरी ताकत से जगमगाते थे

एक छोटे से तारे की एहमियत
किसी ने नहीं जानी
सख्शियत उसकी रह गई
अनकही अनजानी

जिंदगी हमारी भी इक तारे की मानिंद है
न जाने कब नीचे आएगी
भरी रह जायेगी यह पाप की टोकरी यहीं
अच्छाई जो की है वही साथ जाएगी


                                रवींद्र कुमार शर्मा


No comments:

Post a Comment