साहित्य चक्र

06 August 2021

रिमझिम करता सावन


रिमझिम करता सावन मेरा
जियरा-मन खुश करता सावन मेरा 
मिट्टी की सोंधी ख़ुशबू से बहकता 
अंग-अंग मेरा।

रिमझिम करता सावन मेरा।

अठखेलियां करतीं लता और बेंले
बागों की हरियाली देख मन को खूब 
भाता यह दृश्य सुनहरा।

जब अम्बर पर इंद्रधनुष की छटा 
बिखरती तो मानों स्वर्ग उतरा हो जमीं 
पर ऐसा प्रतीत होता।

रिमझिम करता सावन मेरा 
बारिशों संग ठंडी-ठंडी हवाओ का 
चलना जैसे लगता हो गीत मधुर सा
कानों में हवाओं में भी महक आने 
लगतीं हैं जैसे मानों सारा वातावरण 
सुगंधित ओर पवित्र मय सा महसूस 
होता।

मेरे रिमझिम सावन में 
बागों की यौवनता देख खुद की
यौवन का आभास होता।
इनकी हरियाली देख खूब संजने 
संवरने का मन होता ।

रिमझिम करता सावन मेरा 
नहीं भरता जी यह संतरंगी छटा 
देखकर।भला कैसे पिछा छुड़ाऐ
इस संतरंगी समा से हम।

सूखी पड़ी धरती अब महकने लगीं हैं 
सावन की घटा अब बरखा बनकर 
छाने लगीं हैं ।जब बरसती हैं पानी की 
बूँदे तों धरती भी नाचने लगतीं हैं।

जीव,जंतु,पक्षियां भी निखर जाते हैं 
मेरे सावन में।

चारों तरफ शीतलता,और हरियाली ही
दिखाई पड़ती हैं मेरे सावन में।

रिमझिम करता सावन मेरा।


                                   निर्मला सिन्हा

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