साहित्य चक्र

21 August 2021

रक्षाबंधन कविताः स्नेह बंधन



राखी त्योहार है
भाई बहन के स्नेह बँधन का,
कच्चे धागों में भी
रेशमी अहसास का,
राखी के मूल्य का नहीं
भावों के आभास का।

रोली कुमकुम चंदन आरती हो
या महज हल्दी के टीके का,
मँहगी मिठाइयां हों
या मात्र गुड़ या शक्कर का।

कोई अंतर नहीं होता
इस रिश्ते में स्नेह, दुलार
अपनेपन के अहसास का।

रानी कर्णवती ने
हुमायूँ को भाई बनाया,
रक्षा का संदेश भिजवाया
हुमायूं ने बहन की आन की खातिर
भाई होने का फर्ज निभाया,
हिंदू मुस्लिम की बात का
ख्याल भी मन में न लाया।

द्रौपदी ने जब अपनी
लाजरक्षा की खातिर
कन्हैया को था पुकारा,
तब कन्हैया दौड़कर आये
बहन के सम्मान को
आगे आकर था बचाया।

बहन भाई के रिश्तों में
जाति धर्म ऊँच नीच नहीं होता।

खून के रिश्तों से ही ये संबंध हों
जरूरी भी तो नहीं होते,
ये रिश्ता महज विश्वास पर ही
मील के पत्थर गढ़ रहे होते,
कच्चे धागों में ही तो
बहन का स्नेह बसता है,
उसी स्नेह की खातिर भाई
कुछ भी करने को तैयार रहता है।

इस रिश्ते का कोई
मापनी नहीं है,
भाई के लिए बहन की खुशियां ही
जैसे सब कुछ ही हैं,
बहन के लिए उसके भाई से प्यारा
दुनिया में कोई नहीं है।

                                       सुधीर श्रीवास्तव


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