समुद्र मे कितना तूफान,
फिर भी वो शान्त रहता है।
टूटे डाली बार-बार, जड़
फिर भी पनपता रहता है
हिय मे शूल चुभे कितने
वक्त उन्हे सहलाता है,
जख्म पुराना हो कितना
धीरे-धीरे भर जाता है ।
कभी सावन,
कभी पतझड़ का मौसम
कभी सुख,
कभी गम के बादल
नित नया रूप दिखलाता है।
ये जिन्दगी का मुखौटा,
कभी हसाता, कभी रुलाता है
एक बार नही सौ बार गिरा
फिर भी चढ़-चढ़ जाता है।
कभी-कभी अदना सी मकड़ी
भी शिक्षक बन जाता है।
ये प्रकृति ही असली शिक्षक है
जीवन जीने की कला सिखाता है।
विभा श्रीवास्तव
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