साहित्य चक्र

29 August 2021

कविताः "खुद की तलाश"



न जाने हम कहा खो गए थे
मिल ही नहीं रहे थे
यहां वहां जाने कहां कहां ढूंढा
फिर जाकर मिले हम खुद से
जब हम आइने के सामने आ गए
कभी फुर्सत मिली ही नही थी
खुद को निहारने की
पर आज हम ने खुद को देखा
कहा से कहा आ गए हम
दिन बीते महीने साल गुजर गए
सब कुछ बदल गया था
पर हमारे ख़्वाब अभी भी
पलकों पर बसे थे
उतार लिया फ़िर से हमनें
उन्हें अपनी नजरों में
फिर उन्हें सजाया संवारा
और निकल पड़े
उन्हें पूरा करने के लिए
नई राह पर


                                  डॉ. सपना दलवी


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