आज प्रत्येक मनुष्य की आवश्यकता होती है। एक सभ्य एवं शिक्षित परिवार, लेकिन कुछ लोग जिनके साथ भाग्य मजाक करता हो, वो ऐसे दलदल में फंस जाते हैं, जहां से निकलना मुश्किल सा हो जाता है। अगर निकलने की कोशिश की जाय तो उसे पुनः उसी दलदल में धकेल दिया जाता है। ऐसी ही एक अभागिन नारी "हिरुली" परिवर्तित नाम है जो चमोली जनपद के दूरस्थ क्षेत्र "झलिया" परिवर्तित नाम गांव की है।
यह स्थान काफी दुर्गम एवं ठंडा है, जहां पर लोग बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करते हैं, यहां उसका ससुराल था, जब उसका विवाह हुआ तो शायद ही उस गांव में कोई उससे सुन्दर होगा, मनमोहक चेहरा जिस पर हर समय सुन्दर सी हंसी रहती थी। अपने मायके में सबसे छोटी होने के कारण उसे सभी बहुत लाड- प्यार करते थे। कुछ दिन ससुराल में बीतने के बाद हिरुली में काम काज में मग्न होने लगी, क्योंकि उस घर की बड़ी बहू जो थी। उसका पति एक बस ड्राइवर था ,लेकिन परिवार का गुजर बसर हो जाता था क्योंकि उसका ससुर भी खेती बाड़ी करके थोड़ा बहुत कमा लेते थे।
वैसे तो पहाडों में खेती से किसी की भी अजीविका नहीं चल सकती पर, थोड़ा बहुत खाने को हो जाता था। सभी खुश थे बहू के आने पर, क्योंकि हिरुली के परिवार में उसके अलावा दो देवर थे, उसकी शादी के तीन साल बाद हिरुली के देवर की शादी हो गई और अब उसके काम काज में हाथ बटाने के लिये देवरानी आ गई। देवरानी इण्टर पास थी इस लिये ज्यादा दिन घर न रुकी पति के साथ परदेश चल दी अब घर में हिरुली, सास ससुर और सबसे छोटा देवर ,अब हिरुली का एक बच्चा भी हो गया था, जिसका ना गोपी रखा था।
बहुत प्यारा था, जो ४ साल का होने पर नानी के घर चला गया और वहीं रहने लगा, अब हिरुली के सबसे छोटे देवर की भी शादी हो गयी, तब से हिरुली के जीवन में बुरे दिनों का आगमन भी हो गया क्यों नयी बहू आने के बाद सास ससुर का हिरुली के प्रति पहले जैसा व्यवहार न रहा। अब रोज घर में लडाई झगडा़ रहता और हिरा को ही सारा दो दिया जाता, कभी कभी तो मार पीट की नौबत भी आ जाती पर हिरुली बहुत ही सहनशील थी, वह सब कुछ सह जाती थी, अब तो कल की बहू भी "हिरुली" पर बड़ा रौब़ जमाती थी। वह सरल हृदया उसको भी माफ़ कर देती अर हंसी हंसी मे हर बात को टाल देती।
जब घर में सभी भाई आये हुये थे तो सबसे छोटी बहू ने बटवारे की मांग की, कुछ समय पश्चात उनका बटवारा भी हो गया, सभी अलग अलग रहकर अपने परिवार को चलाने में लग गयें, लेकिन उस अभागिन के नाम पर विधाता ने खुशी लिखी ही न थी।
अब उसने इक गाय को भी पाल लिया क्योंकि अब उसके पास इक छोटी सी लड़की भी थी, जिसका नाम गौरी "परिवर्तित नाम" था। घर मां बेटी ही रहती थी, और उसकी सास उसे बहुत अच्छा मानती थी क्योंकि वह अपने सास ससुर की सेवा भी खूब करती थी।
सब ठीक चल रहा था कि, अचानक उसकी सास परलोक सिधार गई, जिससे हिरुली के जीवन पर बड़ा पहाड़ जैसा दुःख आ पड़ा, अब उसकी परवाह करने वाला कोई न था, देवर देवरानी भी "हिरुली"से लड़ते रहते थे, पर ससुर अभी भी बड़ी बहू यानी हिरुली की सादगी और सच्चाई की कद्र करता था।
कुछ समय बाद उसके देवर ने अपने पिता की हत्या कर दी, जिससे हिरुली को बहुत अघात पहुँचा पर उनको आजादी मिल गई, जिसका उन्होने पूरा फायदा उठा कर हिरुली को परेशान करने लगे, उस पर गलत आरोप लगाते कभी सबके सामने जलील करते जो अब सहन के योग्य न था, क्योंकि उसे समझ में आने लग गया था कि मेरे और मेरे बच्चों के जीवन को खतरा है, इस लिये वह अपना मूल घर वहां से गावं में रहने आ गई, पर उन्होंने उसे वहां भी नहीं रहने दिया।
जिस कारण गांव वालों ने भी उसे गांव से निकाल दिया, इन परिस्थितियों में उसके पति उसने भी उस अभागिन का साथ छोड़ दिया। अब वह अबला असहाय हो गई, अब उसके सामने दो रास्ते थे, एक घर से निकल जाना या फिर आत्महत्या, पर उसने बच्चों की ओर देखा और घर से जाने का फैसला लिया। जब वह घर से निकली तब गोपी पांचवी कक्षा में पढ रहा था।
और गौरी का पहली में दाखिला करना था,पर इसी बीच हिरुली घर छोड़ कर चली गई और जाते वक्त खूब रोयी, सारे घर को देखा जो उसने अपने हाथों से सजाया था और फूट फूट कर रोने लगी और वहां से चली गई। उसके बाद कभी न दिखी और ना मिली जाने कहां होगी, कैसी होगी वह भगवान के भरोसे ही जी रही होगी।
कैलाश उप्रेती "कोमल"
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