साहित्य चक्र

21 August 2021

हिंदी कविताः हमारा समाज





हमारे समाज की यही परेशानी है,
बस उन्हें तानें कसने की लाइलाज बीमारी है,
हमारी खुशियाँ हमारे समाज से देखी नहीं जाती,
हमारे दुख में उनकी कड़वी जुबान उनसे रोकी नहीं जाती।

लेकिन हमारी दुनियाँ हमारी है,
हमारे जीवन के हम ही अधिकारी है,
अब मैं समाज की नहीं सुनुगीं,
इस निर्मम समाज के आगे बिल्कुल भी नहीं झुकुगीं।

जब से मन से समाज का डर भागा है,
मेरे मन में इक अनोखा हौसला जागा है,
अब जीवन बड़ा आसान लगता है,
अब हर इक दिन खुशहाल लगता है।

अब समाज की बातें परेशान नहीं करती है,
मेरी दुनियाँ मेरे लिये फैसलों से चलती है,
जब से समाज का डर मन से निकला है,
मेरे जीवन में खुशियों का दौर चल निकला है।


                                        कल्पना त्रिवेदी


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