इक जमाना था कभी पैगाम लाती चिट्ठियाँ
अब कहाँ कोई भी भेजे मुस्कुराती चिट्ठियाँ
हर घड़ी ऐसा लगे जैसे महीनों हो गए
डाकिए का रास्ता सबको दिखाती चिट्ठियाँ
छीन लेती थीं सखी चुपचाप आ पीछे से खत
क्या लिखा हम भी पढ़े, तू क्यूँ छिपाती चिट्ठियाँ
डाक बाबू यूँ लगे जैसे मसीहा है वही
हाल बेटे का बता मलहम लगाती चिट्ठियाँ
देखकर कोना फटी आती कहीं से पातियाँ
बैठने लगता ज़िगर आँसू बहाती चिट्ठियाँ
याद आता है बहुत गुजरा हुआ 'अंजू'वो कल
आज भी पढ़ पढ़ हसूँ कभी रुलाती चिट्ठियाँ
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