मनहरण घनाक्षरी
घनाक्षरी छंद जान
शब्द अनुबन्ध गान
मन बस भावना से
सराबोर चाहिए ।
नदिया सी बहे धार
सहज हो ज्यों प्रवाह
नाचता मगन मुग्ध
मन मोर चाहिए ।
पूनम के चाँद जैसा
तट पर बाँध जैसा
बाँसुरी की धुन कोई
चित चोर चाहिए
सूर्य जब हो उदित
रोम रोम प्रमुदित
अंधकार चीरती सी
होनी भोर चाहिए
✍🏻रागिनी स्वर्णकार
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