साहित्य चक्र

04 January 2020

लाख चादरें चढ़ाई होगी मज़ार पर

समाज की हक़ीक़त

लाख चादरें चढ़ाई होगी मज़ार पर
न जाने कितनी लकड़ियों का हवन हुआ होगा


मर गया एक शख्श सर्द से तड़पकर
धिक्कार है ऐसे ज़कात और पुण्य प्रताप पर
हे मेरे भगवन!माफ करना मैंने अगर गलत कहा

दिखावे की इस दुनिया मे अगर सच कहा
बस हक़ीक़त बयाँ करने की ताक़त जो दी है तुमने
जो कहा बस उसी के दम पे कहा

हे मालिक! सम्भाल लेना उस सर्द में तड़पने वाले को
यहाँ तो सब है बस दिखावटी और जाली लोग।

                         शुभम पांडेय गगन


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