साहित्य चक्र

27 January 2020

संभल जाओ... अभी वक्त है।





संभल जाओ मेरे प्यारे... अभी भी वक्त हैं ।
अपनी संस्कृति को बचाओ यह मांग वक्त की है ।

भौतिकतावादी सुख सुविधाओं के पीछे नहीं दौड़ो ।
पाश्चात्य संस्कृति हावी होना सही न इसे तुरंत छोड़ो ।

अपने खुद के लिए ही जीना कोई जीना नही होता ।
अपने बहकने के लिए पीना यह कोई पीना नहीं होता। 

युवा दिल! जीते हो तो कुछ कीजिए राष्ट्र के लिए ।
देश की प्रगति ही समाज पथ प्रगति है अपने लिए ।

यह आपके मन का उगता सूरज नया विश्वास उल्लास ।
जगमग रहेगा और देता फैलाता रहेगा नया प्रकाश ।

यही अपना राष्ट्र धर्म है खोना नही हैं देशहित मे निरंतर ।
'रावत' अपनी संस्कृति राष्ट्रहित में रहे हरदम अग्रसर  ।।


                          सूबेदार रावत गर्ग उण्डू  "राज"


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