उसका गम मैनें सह लिया कल था।
वो गैर का दौर नफ़रत का पल था।।
भरोसा तोड़ा उसने उस वखत मेरा,
दिल जब उसके आँचल के तल था।
जानते बात न थे उसके मन की हम,
बात फैली तो दूर जाना ही हल था।
शरीफ तो जितना था वो साथी मेरा,
अपने अश्कि का करना कतल था।
उसके हाथों में फैसला था आगे का,
सोचकर ही शायद दिया कुचल था।
आज कोई बात न 'नील' की सुनती,
जिसके महफिल में गाया गजल था।
सूरज कुमार साहू
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